चल मोहब्बत लिखते हैं
एहसास के पन्ने पर चल मोहब्बत लिखते हैं
और बनाते हैं कुछ नोट कागज़ के
खरीद फरोख्त के इस मौसमी दौर में
मैं तुझे खरीदता हूँ तूँ मुझे खरीद
दुनिया के फेर में न पड़कर फेरते हैं कुछ सिक्के भरोसे के…
कुछ तूँ रख ले और कुछ मैं
आ तय कर ले मैं से हम तक का सफर
जहाँ मैं के लिए कोई जगह न हो
फिर बोते हैं हसीन रिश्तों को
भरोसे की जमीन पर……
और उगाते हैं भरोसे के पौधे
जो आगे चलकर शतायु हो जाएँ
अटूट धागों से बाँध लेते हैं एक दूजे को
जो बनें हों चाह के रेशे से
दुनिया की कहनवाजी के एवज में
चल बहरे हो जाते हैं दोनों
और कर लेगें क्षणिक बातें इशारों में
कौन कहीं दोनों हकीकत में बहरे हैं
सबकी आवाजें ज़ब कर्कश हो जाएँ तो
खुद के अधरों को मौन कर लेना वाजिब है
हमें तो आता ही है आँखों से बाते कर लेना!!!!
-सिद्धार्थ गोरखपुरी