चल पड़ा है सामरिक
चल पड़ा है सामारिक…..????????
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चल पड़ा परचम लिए मैं,
हर गली और गाँव को ।
है जहाँ सम्पूर्ण भारत,
वर्ष के उत्थान को ।।
है निहित सत्ज्ञान पथ ,
हर पग है दैविक ब्रह्म सा ।
करवटों में वक्त के हूँ,
सत्य के ईमान को ।।
चल पड़ा परचम लिए……………..
चर अचर चैतन्य जड़ ,
नव प्राण लेकर चल रहा ।
ऐसा लगता है कि मेरे,
साथ धरती चल रही ।।
देख कर के देव दानव,
साथ मिलकर गा रहे ।
कि चल पड़ा है सामरिक अब,
देश के आवाम को ।।
चल पड़ा परचम लिए……………….
बुझ रहा था दीप,
नूतन ने प्रभा को ले लिया ।
एक ने सौ कर दिया और,
जग को रोशन कर रहा ।।
आशियाना थी उजड़ती,
ताप से अन्याय के ।
कर विभा सत्धर्म ने ,
दे दी है न्योता न्याय को ।।
चल पड़ा परचम लिए…………….
बिन लहू मानस पटल पर,
न्याय ने आश्रय किया ।
बिन समर के सामरिक ने ,
हार तम को दे दिया ।।
धर्म की धारा बहे फिर,
मानसिक संज्ञान में ।
चल पड़ा विज्ञान भी अब ,
लक्ष्य के संधान को ।।
चल पड़ा परचम लिए…………….
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-(अरुण सामरिक NDS)
देवघर झारखण्ड
11/10/2015
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