चल पड़ो
चल पड़ो, जिधर लें चले कदम,
न श्वेत श्याम की हो फिकर,
न धूप छाँव का हो असर,
स्निग्ध सी मुस्कान हो,
हृदय में सुंदर गान हो,
अवसान भी हो जाये तो,
चलते रहो,चलते रहो,
कंटक बिछे हो राह में,
न हो हाथ कोई हाथ में,
डिगो नहीं, न उदास हो,
चलना ही अपना धर्म है,
श्रम से साधे ,वही कर्म है,
सत्य अन्वेषण करो,
जीवन के धारा प्रवाह में–
चलते रहो,बढ़ते रहो।