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27 Aug 2021 · 1 min read

चल दिया मुसाफिर

चल दिया मुसाफिर

चल दिया मुसाफिर खाली मकान रह गया
राहें पूछती रही जाने कहां चल दिया
कल तक जो लगते अपने से थे
वो अब बेगाने हो चले
लग रहा था सब कुछ जाना पहचाना सा
फिर भी हर इक चेहरा अनजान हो गया

यूँ तो थी ईंट पत्थर से बनी सब दिवारे
फिर भी कुछ तो था जो वहीं रह गया
थी कल तक जहां चहल पहल
आज सब सुनसान हो गया

छूट गई दहलीज़ अब चल रहा बदहवास सा मैं सड़क पर सो गया
था शहर मेरा था वतन मेरा फिर भी मैं गुमनाम हो गया

Language: Hindi
3 Likes · 225 Views
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