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15 Jun 2023 · 1 min read

चल अकेला…

चल अकेला, बढ़ अकेला
बढ़ अकेला, चल अकेला ।
चाह तेरी, मार्ग तेरा
काम न आएगा मेला
चल अकेला, बढ़ अकेला …।
प्राण-तन सब छक चुके हैं
बूंद न मिलती हृदय को
तोड़ लाओ चाँद-तारे
और मिटा लो इस जिरह को ;
श्वास भर फिर देख ले तू
आ गई नवप्रात बेला
चल अकेला, बढ़ अकेला
बढ़ अकेला , चल अकेला ।
क्यों व्यथित, चिंतित खड़ा है?
हार, मुर्दों-सा पड़ा है
जीव को मुक्ति है प्यारी
मुक्ति की युक्ति है सारी
तोड़ बेड़ी-बंधनों को
कर पुनः जीवन से भेला
चल अकेला, बढ़ अकेला
बढ़ अकेला, चल अकेला ।

(मोहिनी तिवारी)

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