चलो सखी
चलो सखी कहीं दूर चलते हैं
जिम्मदारियों को भूलकर
एक नया आसमान खोजते हैं
कब ,क्या ,क्यूँ और कहाँ
इस बात का टेन्शन पीछे रखते है
बस ठंडी सी पूर्वा के झोंकों के साथ
एक सुहानी दौड़ लगाते हैं
चलो सखी कहीं दूर चलते हैं
इनका office ,उनका स्कूल
इसकी चाय और उसकी दवाई
इन सारे ताने बाने को छोड़ कर
एक दिन का कुछ नया टाइम पास सोचते हैं
चलो सखी कहीं दूर चलते हैं
ज़रा एक रात मिल कर
पजामा पार्टी में गुनगुनाना कर
बेमतलब के ठहाके लगा बेसुध से पड़े रह कर
एक अलग सवेरे का आग़ाज़ करते हैं
चलो सखी कही दूर चलते हैं
मेरी परेशनियाँ पर तुम हँस लो
तुम्हारी तकलीफ़ों की मैं पतंग बना लूँ
कुछ तुम कह लो कुछ मैं बोल दूँ
इस वक़्त को कुछ अलग तरीक़े से जी लेते हैं
चलो सखी कहीं दूर चलते हैं…..
स्वरचित मीनू लोढ़ा