चलो बनाएं
चलो बनाएं
लोकल को वोकल बनाये
चलो आज कुछ नया बनाये
दुसरो के साये में खुद को न सजाकर आज फिर
खुद से जद्दोजहद कर कोशिश नयी कुछ हटकर बनाये
चलो आज फिर से एक उम्दआं कोशिश कर के आये
हुनर कल के आज लोकल को फिर से एक वोकल बनाये
जो अतीत से सीखा था हमनें कुछ अपनें ज़मीर के रंग से
उस रंग को धुमील न कर आज फिर से नये अदब रंग में सजायें……
हम कुछ भुले अपने कल को आज उसे स्मृति हो आयें
अपने दमखम उम्मीदों का फिर से अलख जगायेंगे
जिनसे हुए किनारे पश्चिम से कल को उसे गले लगाए
अपनी माटी अपना रंग सबका अब अपना ही परिवेश बनायें…….
आज़ादी के जश्न पें कुछ भुली उम्मीद जगायें
अपने श्रमित कर-कमलों से नया भारत बनायें
आजादी के पद चिन्हों पे वो इतिहास बनाये
स्वदेशी का इलम लेकर निर्भर आत्म बनाये
आओ मिलकर आज फिर से हस्ती वो गीत गाये
खुशहाली के गीत लेकर कृषित मन हरसायें
मातृ मातृभूमि का वो नित सम्मान करायें
जात पंथ का भेद भुलाकर सब को गले लगायें
भाल हिमालय रक्षक करते प्रहरी मान बढ़ायें
गांधी का स्वराज स्वप्न वो रामराज्य बनाये
टुटे ना अखंड भारत मेरा चलो एक हो जाये
तिरंगे के रगं में हस्ती आज फिर एक रंग हो जाये
पश्चिम के चुंगल से हटकर अब नयी डगर चलाये
पर सोच बना ली खुब!अब अपनी सोच बनाये
अपने में क्या है देखो! हुनर उसकों फिर से जगाये
हुनर अतीतों के रंग को आज फिर से नवनीत बनाये
चलो आज हस्ती!खुद के सोये को फिर से जगायें
विस्मृत हुए मन को अभी फिर से स्मृति कराये
अपने मैं का परित्याग कर आज खुद मैं को जान पाये
अपने लीक से हटकर देखो आज नयी चाल चलाये
चलो आज आजादी पे फिर एक नयी शुरूआत कर आये
प्रजातंत्र की ज्वाला में फिर से वोकल बनकर आये
अपनी जमीर अपनी पहचान आज खुद बनाकर आये
चलो आज बापूजी के स्वप्न को लोकल से वोकल बनायें….
स्वरचित कविता
सुरेखा राठी