चलो दो हाथ एक कर ले
चलो दो हाथ एक कर ले
आज फिर किसी का साथ कर ले
मुनासिब नही की वो साथ चल पायेगा!मगर
जरा सी तुम पहल कर दो शुरू ;शायद! वो चला आयेगा ।।
चलो दो विचार एक कर ले।
समझौते की दरार को फिर से बांट ले।
मुमकिन नही कि वो;खुद को हम मे ढाल पायेगा!मगर
ज़रा सा खुद को उस से जोड़े ;शायद! वो जुड़ आयेगा ।।
चलो दो काम हस्ती! एक कर ले ।
आज फिर किसी का हम हाथ बांट ले।
यकीनन झूठ नही हित से की वो हमसे जुड़ जायेगा मगर
ज़रा सी कोशिश से अपनी हस्ती!कहीं ;वो दिल से जरूर !शुक्रिया कह आयेगा ।।
चलो दो कदम फिर से एक साथ चल लें ।
राह गुजर रास्तों को ज़रा एक कर ले ।
आसान नही मालुम है मुझे आज भी रास्ते का डगर मगर
ज़रा सी कोशिश करके देखे कदम रोककर अपने; आज नही कल कदम जरूर मिलायेगा ।।
चलो आज दोहरे वक्त को फिर एक कर ले
नवीनता की आड़ मे आज फिर पुरातन को जोड़ ले।
माना की बदलते वक्त को फिर से दोहराया नही जा सकता मगर!
ज़रा सी कोशिश से शायद हस्ती!कहीं पुरातन की छांव मे;नवनीत संवरने आयेगा ।।
चलो आज बेजान बोलते शब्दो को एक कर ले ।
शब्द के मतिभ्रम को फिर से भेद ले।
मुमकिन नही शब्दों को अलग कर पाना आज
मगर
वक्त के साथ जरूर देख लेना :शब्द अपना दम दिखा जायेगा ।।
चलो आज दो गम एक कर ले ।
किसी के आंखों में खुशी के आसूं भर ले।
मालुम है हस्ती!अखरता रहेगा तु उसके दिल में आज भी मगर!
ख़ालिस्तान उसके दिल मे कहीं आज भी शुक्रिया!है जरूर !जो उसकी बुझती आंखों में दिख जाएगा ।।
चलो आज बुझती लो को सहारा दे ले।
ना उम्मीद के अंधेरों मे एक उजाल दे ले ।
मालुम है हमे वो टूट चुका है अब अपनी उम्मीद से मगर
हर्ज क्या है कोशिश करने मे हस्ती!शायद!कभी वो जाग जायेगा ।
स्वरचित कविता
सुरेखा राठी