चलो ! तुम्हें तुम्हारे फर्ज़ याद करवा दूँ ..
बहुत बातें करते हो तुम अपने हक़ की ,
चलो ! तुम्हें तुम्हारे फर्ज़ याद करवा दूँ ।
पहला फर्ज़ था तुम्हारा धरती माँ के लिए ,
क्या तुमने इसकी खुशहाली और हरियाली के लिए
कुछ प्रयास किया ?
दूसरा फर्ज़ था तुम्हारा अपनी जननी के लिए ,
क्या उसकी सेवा और आदर – सत्कार किया ?
तीसरा फर्ज़ था तुम्हारी भार्या के लिए ,
क्या उसे सम्मान,स्वतन्त्रता और
समानता का अधिकार दिया ?
चौथा फर्ज़ था तुम्हारी बेटी और बहन के लिए ,
क्या उन्हे भी स्वतन्त्रता ,समानता और
विचार -अभिव्यक्ति का अधिकार दिया ?
अब अंतिम फर्ज़ है तुम्हारा देश की हर नारी के लिए ,
चाहे वो माँ,बहन, बेटी / शिशु कन्या हो ।
इनके लिए पिता,पुत्र,भाई तुल्य स्नेह ,
ममता,दुलार,आदर-सम्मान क्या तुम्हारे ह्रदय में है ?
क्या तुम्हारी मानसिक संकीर्णता दूर हो गयी है ?
क्या तुमने अपनी गंदी सोच पर काबू पा लिया है ?
यह मात्र सवाल नहीं,सवालों के रूप में तुम्हारे फर्ज़ हैं।
जो तुम भूल गए हो हे अभिमानी,कामी,निरंकुश,दंभी और दानव -पुरुष !
अब यदि तुम्हें फिर भी याद नहीं आ रहे अपने फर्ज़ ,
तो फिर कुदरत का कहर ही तुमको सब याद करवा देगा ।
तब तो सब याद आ जाएगा ना !!