“चलो जी लें आज”
विजात छंद
जिधर देखो, उधर गम है।
मिले ज्यादा, मगर कम है।
बड़ा घर है, सभी सुख है।
नहीं जो हाथ,वो दुख है।।
दिखे पतझड़ बहारों में।
नहीं खुश हैं हजारों में।
बहुत कुछ और पाना है।
तिजोरी भर कमाना है।।
नहीं कुछ ठीक से खाया।
नहीं था गीत कुछ गाया।
गुजरता ही गया जीवन।
बुढ़ापा है खड़ा आंगन।।
मुसाफिर सा ठिकाना है।
नहीं कुछ साथ जाना है।
चखो सब स्वाद इस पल का।
भरोसा मत करो कल का।।
राधा अय्यर कस्तूरी
अहमदाबाद