चलो चलें भविष्य निर्माण की ओर -:
चलो चलें भविष्य निर्माण की ओर,
थामे हुए उत्साह से विश्वास और उम्मीद की डोर।
तुम्हारे हाथों में भारत का आने वाला कल है,
वह अबोध बालक मां की तपस्या का प्रतिफल है।
जरा ध्यान से गीली मिट्टी है , सुडौल बनाना है ।
तू ही है इसका सृजन हार, संस्कारों से सुसज्जित चरित्रवान बनाना है।
ऐसा न हो कि तू दैनिक क्रिया कलापों का राग अलापता रहे।
और रैलियों के बावजूद विशेष अनुग्रह से आया बालक तुझे ताकता रहे।
यह विभाग तेरे समक्ष नित नई चुनौती लाएगा।
कभी सेल्फ़ी भोजन,पौधारोपण,तो कभी शौचालय में भिजवाएगा।
अब यह तुझ पर है कि तू इतनी सारी कसौटी पार कर ,
कैसे उस बालक तक जाएगा।
कैसे उस बालक को आर्यभट्ट और कल्पना चावला से आगे ले जाएगा।
तेरी यह दक्षता ही तुझे औरों से श्रेष्ठता दिलाती है।
इसी के बल पर तो रेखा गुरु कहलाती है।