चलो गांवो की ओर
चलते है शहर छोड़ अपने गांवों की हम ओर।
यहां न मिलेगा शहरों जैसा उच्चा हमको शोर।।
मिलेगी ठंडी स्वच्छ हवा गांवों में ही हमको।
कोई भी डर न होगा प्रदूषण का यहां हमको।।
मिलेगा पूरा बिग बाजार गांवों में भी हमको।
दर्जी,मोची,लुहार सब मिलेगा यहां हमको।।
खाने की कमी नही,पेट भर कर यहां खायेंगे।
आम अनार संतरा जी भरकर हम यहां खायेंगे।।
शहरों में उद्योगों के चिमनी जहर उगल रही है।
मेरे गांव की नीम की ठंडी हवा उगल रही है।।
गांवों में गपशप के लिए चौपालो की कमी नही।
शहरों में एक दूजे से बात के लिए तैयार नहीं।।
इसलिए कहता हूं भईया,गांवों की ओर प्रस्थान करो।
शहरों में कुछ नही रक्खा,क्यो जीवन को बर्बाद करो।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम