चलो गगरिया भरने पनघट, ओ बाबू,
किशोर छंद
चलो गगरिया भरने पनघट, ओ बाबू,
तन मन डोले पाकर आहट, ओ बाबू,
बंधी प्रेम की डोर तेरी साँसों से,
यूँ मत खोलो मेरा घूँघट, ओ बाबू..!
पंकज शर्मा “परिंदा”
किशोर छंद
चलो गगरिया भरने पनघट, ओ बाबू,
तन मन डोले पाकर आहट, ओ बाबू,
बंधी प्रेम की डोर तेरी साँसों से,
यूँ मत खोलो मेरा घूँघट, ओ बाबू..!
पंकज शर्मा “परिंदा”