चलो आज रंगपंचमी मनाते हैं
चलो आज रंगपंचमी मनाते हैं
बचपन की खोई यादों को फिर से बुलाते है.. चलो
वो गलियों की दौड़, छिपे दोस्तों को रंग में रंगने की होड,
जो भूल गए या भुला दिए, उनको याद दिलाते हैं.. चलो आज रंगपंचमी मनाते हैं
कल के खिलनदड़ (हुरियारे) व्यस्त बिरादरी में खड़े हो गए हैं, क्या ये हमारे त्योहारों से बड़े हो गए हैं,
जो रंग रह गए सिर्फ किताबी उन्हें फिर जगाते है….चलो
कि खेलने रंगो से दंगल छूने को उनके गाल मलमल,
फिर से अपनी अवस्था, किशोर वाली दोहराते हैं, चलो आज..
होता है सबका मन पर मन मसोस जाते हैं, इस दौर में खुद से ही खुद को ठगा पाते है,
कहता है कवि जो चले गए, वो पल फिर नहीं आते हैं..
चलो आज रंगपंचमी मनाते हैं
चलो आज रंगपंचमी मनाते हैं