चलो आज थोड़ी तुम भी पियो
चलो आज तुम भी पियो थोड़ी हम भी पीते है
साक़ी की नजरों में नजरें डाल पैहम भी पीते है
माना बदनाम हो जाऊँगा यारों की महफ़िल में
चाय के शौकीन हम आज वोदका रम भी पीते है
क्यों तौबा करें हम पीने से हम भी तो जवान हुए
मिलाकर थोड़े खूबसूरत ख्वाब ज़मज़म भी पीते है
साक़ी ने बड़े प्यार से बोतल हिला आवाज़ दी हमकों
समझतें तुमकों अपना साथी चलो बेमौसम भी पीते है
लम्हा लम्हा खुशियों में पीते है लोग बदनाम मय हुई
अश्क भड़काते जब आग तो आँखें कर नम भी पीते है
जा ख़ुदा खुदकुशी कर बैठा तेरा अशोक हमदर्दी दिखा
तू भी पीले वर्ना कहाँ रूबरू ए नासिह ए बरहम पीते है
तू क्या जाने मौला साहिल की तमन्ना कश्ती डुबोने की
मेरी गर्दन पर खंजर और देखों होकर हम बेदम पीते है
अशोक सपड़ा की क़लम से दिल्ली से