चले भी आओ कि महफ़िल सजाये बैठा हूँ
चले भी आओ कि महफ़िल सजाये बैठा हूँ
तुम्हारी याद में खुद को भुलाये बैठा हू
ज़रा सी बात पर क्यों मुझसे रूठ जाते हो
तेरी रुसबाई भी दिल से लगाये बैठा हूँ
मेरी खता है तो शमशीर ले तू हाथों में
मैं तेरे सामने सर को झुकाये बैठा हूँ
तू हैअमीर तो बस प्यार भीख में देदे
इसी उम्मीद में झोली फैलाये बैठा हूँ
हर एक शय में मुझे तू ही नज़र आता है
तुझे ही जीने की बज़ह बनाये बैठा हूँ
भले ही लोग समझे “योगी” तेरा पागलपन
दीवाना स्याम का खुद को बनाये बैठा हूँ