चले आते हैं उलटे पाँव कई मंज़िलों से हम
चले आते हैं उलटे पाँव कई मंज़िलों से हम
जहाँ पर तुम नहीं मिलते वो कैसा आशियाना है
बिखर कर फैल जाते हैं ना जाने कितने अफसाने
और ये ज़िंदगी तन्हाई का गुम सुम फसाना है
हथेली की लकीरों के इशारों पर तो चलना है
थके हों पाँव कितने ही भले रास्ता वेगाना है
हमें तो रोज अपने आप को सुनना सुनाना है
तुम्हारी याद का क्या है उसे तो रोज़ आना है
लिखकर तुम्हारे नाम दिल की अनकही बातें
तुम्हारे पढ़ने के इंतज़ार में हर पल बिताना है