चला
दुख -दर्द सुख शान्ति विषाद चिंता की
नैया के पार नीर को चीर मैं चला
जीवन की गहराइयो की चिंता न कर
सागर के भँवरों मे अस्तित्व को बचा चला
ध्यान तो मेरा रचनाओं की लेखनी पर
जहाँ नहीं है मुस्कराहट के झरने
टूटी फूटी विषमताओं के काँटे है
चीथरों में सुराख आसूओं का सैलाव है
मत कर बात इस देह की जो बन मिट्टी से
बचपन की मस्ती उछाल के मिट्टी
झूँठ फरेब कर जिया मैं और यह इनसाँ
अपने को खुशहाल करने को डिगाया इमान