चला था जब मैं
चला था जब मैं साथ मेरी परछाई भी थी
भीड़ के दामन में दुबकी तनहाई भी थी
किसी के घर में मातम था सन्नाटा था
वहीँ किसी के घर गूंजी शहनाई भी थी
बेटी से माँ बाप का रिश्ता रब जाने
जो कल तक थी अपनी वही पराई भी थी
छोड़ मेरा घर और कहाँ जाती चिड़ियाँ
मेरे घर में पेड़ भी था अँगनाई भी थी
दुश्मन दोस्त हैं दोनों एक ही चेहरे में
जिसने बुझाई आग उसी ने लगाई भी थी
शहर का मौसम आज है कुछ बदला-बदला
शायद पछुवा संग चली पुरवाई भी थी
झूठ बोल कर बना मसीहा जब संजय
गुमसुम-गुमसुम वहीँ खड़ी सच्चाई भी थी