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17 Feb 2024 · 1 min read

चला गया

दुःख की वह प्रस्तावना लिखकर चला गया
शैली निगमन भावना लिखकर चला गया
क्या लिखूँ क्षणों को जिसमें मैं स्वयं नही
मैं इक अबूझ कामना लिखकर चला गया
टकरा के पूछता हूँ मैं घर की दीवारों से
क्यूँ अपनों को यूँ बाँटना लिखकर चला गया
माना है उसके हाथ में खुशियों की लकीरें
क्यों अपनी वो दुर्भावना लिखकर चला गया
समझेगा मुझे कौन अब मुझे कौन पढ़ेगा
मुझको हठयोग साधना लिखकर चला गया
मैं ग्रन्थ हूँ अभिभूत व्याकरण लिए हुए
पर वो मुझे दुःख माँजना लिखकर चला गया
मेरी है ‘महज’ कामना दुनिया मुझे पढ़े
कुछ अंश मन सुहावना लिखकर चला गया

Language: Hindi
1 Like · 150 Views
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