चलती बस में
चलती बस में देखा उसे
गोद में एक बच्चे के साथ
उम्र रही होगी….लगभग
तीन या चार माह बच्चे की
और चौबीस या पचीस वर्ष उसकी
वो खड़ी थी..मैं भी खड़ा था क्योंकि
मैं अपनी सीट पहले ही दे चुका था
एक परमशक्तिशाली नारी को
जिसे लोग पत्नी कहते हैं
खैर वो भी खड़ी थी…मैं भी खड़ा था
आप सोच रहे होंगें कि
दुनिया कितनी खराब है
एक बच्चे सहित माँ को
नहीं दे सकती सीट
मगर मुद्दा वो है ही नहीं
और होना भी नहीं चाहिए
क्योंकि जिस महिला को पुरुष सीट देता है
उतरते वक्त
महिला उसे न देकर
दे जाती है किसी दूसरी महिला को
या फिर किसी स्मार्ट से व्यक्ति को
क्योंकि स्मार्ट लोग
किसी को अपनी सीट नहीं देते
पत्नी को अपवाद मान लें
हाँ वो भी खड़ी थी..मैं भी खड़ा था
वो सीने से बच्चे को चिपकाए हुए
मुस्कुरा रही थी
कभी-कभी उसकी नजर मिल जाती थी मुझसे भी
मिलना तो लाजिमी था
क्योंकि मैं देख ही उसे रहा था
अब आप सोचेंगे कि मैं फ्लर्ट कर रहा था या फिर
चक्कर वाली बात है
तो यहीं पावर ब्रेक लगा दीजिए
क्योंकि आप फिर गलत दिशा में जा रहे हैं
पत्नी के रहते ये रास्ता ठीक नहीं होता ..खैर
मुद्दा वो नहीं है
मुद्दा तो ये है कि ऊबड़-खाबड़ रास्ते पर
जिस ढंग से बस चल रही थी
और जिस तरह से अचानक झटके लग रहे थे
उसमें खुद को सँभालना ही
बहुत मुश्किल था किन्तु कमाल तो ये है कि
इतनी मुश्किलों के बावजूद
नहीं गिरी वो महिला
किन्तु मुद्दा वो नहीं है़
मुद्दा तो ये है कि इन झटकों के दरमियान
बच्चा कुनमुनाया तक नहीं
सोया रहा निश्चिंत…बेसुध
ठीक वैसे ही जैसे कि
आत्मा ने पा लिया हो
परमात्मा की गोद
यह घटना देखकर आभास हुआ
कि वास्तव में नारी है
दैवीय शक्ति से आच्छादित
जैसे जैसे नए रिश्तों का जन्म होता है
नारी की शक्तियां,सतर्कता तीक्ष्णता,बारीकियाँ
बढ़ती जाती हैं
वही पुरुष रिश्ते निभा पाता है
जिसके पास योग्य पत्नी हो
बाकी तो हैं
अविवाहित से भी गए गुजरे
खैर मुद्दा वो नहीं है
और मुद्दा ये भी नहीं है
झूठ वो भी नहीं है और
सत्य से एक प्रतिशत दूर ये भी नहीं है
खैर वो नीचे उतर चुकी थी
और मैं अब भी खड़ा था
खुद को झटकों से किसी तरह बचाते हुए….