Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
1 Jul 2021 · 4 min read

चरित्र परिवर्तन (उत्तराखण्ड 2013, सत्य घटनाओं से प्रेरित)

“सब ईश्वर की इच्छा है, इसमें हम इन्सान क्या कर सकते हैं।”
नेताजी के कानों में रह रह कर ये शब्द गूँज रहे थे। अभी चन्द घण्टों पहले एक न्यूज चैनल पर केदारनाथ व आसपास के क्षेत्रों में हुई भीषण तबाही का मंजर देखते हुए नेताजी ने यही शब्द कहे थे। जब उनकी पत्नी ने उनसे आग्रह किया था कि इतने लोग संकट में हैं और अपने क्षेत्र की सत्तारुढ़ पार्टी के एक बड़े नेता होने के नाते वे उनकी सहायता के लिए कुछ करें। तब नेताजी इसे ईश्वर की करनी बताकर टीवी पर दिखाए जा रहे उन दर्दनाक और भयावह दृश्यों का आनन्द ले रहे थे।
“देखो यहाँ घर बहे……., अरे देखो यहाँ मन्दिर गिरा…….., ये सड़कें टूटी….., यात्री फंसे…..।”
भीषण तबाही की तस्वीरें भी नेताजी को एक सर्कस की तरह मनोरंजित कर रही थीं। उनकी इन बातों से आहत दयालु हृदया पत्नी मन ही मन कुढ़ते हुए अपने काम में लग गई।

यूँ तो नेताजी सदैव अपने भाषणों के द्वारा जनता के सुख दुख में उनके साथ खड़े रहने का दावा किया करते थे और अधिकांशतः शादी ब्याह, पार्टी आदि कार्यक्रमों में नजर भी आते रहते थे परन्तु सुख में शामिल होना अलग बात है और किसी के दुख में भागीदारी करना अलग। आधुनिक सुख सुविधओं से सुसज्जित अपने देहरादून स्थित निवास स्थान पर नेताजी आधा दर्जन नौकरोें और पत्नी निर्मला के साथ सुख से रहते थे। उनका बेटा राघव भोपाल के किसी काॅलेज से इन्जीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। इकलौती सन्तान होने के कारण दोनों पति पत्नी उसे हद से ज्यादा प्यार करते थे।
नेताजी अब भी अपने वातानुकूलित घर में बैठे बैठे ही टीवी के माध्यम से आपदाग्रस्त इलाकों का दौरा कर रहे थे। उत्तराखण्ड राज्य में आई जल प्रलय का साया अब तक लगभग सभी न्यूज चैनलों पर छा चुका था। चैनल बदलते हुए अचानक एक दृश्य देखकर नेताजी की साँसे जम सी गईं।
“निर्मला… यहाँ आना….”
बहुत ही घबराई आवाज में उन्होंने अपनी पत्नी को आवाज लगाई।
“क्या हुआ जी?”
कहते हुए निर्मला ने ड्राइंग रुम में प्रवेश किया।
“अब क्या हो गया, इतने परेशान क्यों हैं आप?”
“वो….. मैंने अभी अभी राघव को वहाँ देखा है। जरा फोन लगाना उसको”
नेताजी ने जल्दी जल्दी कहा।
“कल ही तो बात हुई थी मेरी, वो तो भेपाल में है। आपने किसी और को देखा होगा।”
निर्मला ने सन्देहात्मक लहजे में उत्तर दिया।
“नहीं जी, मुझे लगता है मैंने उसे ही देखा है, तुम फोन तो करो उसे…।”
“आप तो बेवजह फिक्र करते रहते हैं।”
कहते हुए निर्मला राघव का नम्बर डायल करने लगी। उधर नेताजी दोबारा कहीं कोई सन्तोषजनक दृश्य दिखाई पड़ने की उम्मीद में टकटकी लगाए चैनल बदल बदल कर देखने लगे।
“सुनिए!”
उनकी एकाग्रता को भंग करते हुए निर्मला ने चिन्तित स्वर में कहा
“उसका फोन नहीं लग रहा है, नम्बर पँहुच से बाहर है, ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ। अब तो मुझे भी फिक्र हो रही है।”
नेताजी एकदम उठे और डायरी उठाकर हाॅस्टल का नम्बर ढूंढने लगे। काॅल करने पर पता चला कि राघव दो दिन पहले कि घर जा चुका है। फिर उसके किसी मित्र को फोन करने पर मालूम हुआ कि वह कुछ दोस्तों के साथ केदारनाथ घूमने गया है। घर से दोस्तों के साथ जाने की इजाजत नहीं मिलती इसलिए नहीं बताया। सुनकर दोनों पति पत्नी के पैरों तले से जमीन खिसक गई।
नेताजी ने कुछ बड़े अध्किारियों और बड़े नेताओं के नम्बर मिलाने शुरु किए पर कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं मिला। एक मंत्री जी ने कुछ इन्तजाम करने का आश्वासन देकर फोन काट दिया। नेताजी फोन कान से हटाने ही वाले थे कि उधर से कोई आवाज सुनाई पड़ी। फोन शायद ठीक से कटा नहीं था। कोई मंत्री जी से पूछ रहा था कि क्या हुआ, तो मंत्री जी ने जवाब दिया
“कुछ नहीं, वो राधेश्याम का लड़का केदारनाथ में फंस गया है, कुछ करने को कह रहा था, पर यह तो ईश्वर की इच्छा है, इसमें हम क्या कर सकते हैं।”
मंत्री जी की अन्तिम पंक्ति नेताजी के हृदय को तीखे बाण की मानिन्द भेदती सी चली गई। जमती हुई साँसे जड़ हो गईं। एक क्षण में इस विपत्ति का कारण उनकी समझ में आ गया। यही शब्द उन्होंने अभी कुछ घण्टों पहले अपनी पत्नी से कहे थे।

परमपिता परमात्मा का सारा खेल अब नेताजी को समझ आने लगा। हमारा यह जीवन एक परीक्षा है और ऊपर वाला हमारी काॅपियों को जाँचने वाला। वह ऐसे ही अंक हमें देता है जैसा हम अपनी चरित्र रुपी कलम से जीवन रुपी उत्तर पुस्तिका पर लिखते हैं। अभी कुछ समय पहले जिन आपदा पीड़ितों को देखकर नेताजी तमाशे का आनन्द ले रहे थे अब वे खुद भी उस तमाशे का एक हिस्सा थे और तमाशबीन अब उनकी हालात का लुत्फ उठा रहे थे। उनकी आँखों से पश्चाताप के आँसू छलक पड़े। मन ही मन ईश्वर से क्षमा याचना करते हुए वे कपड़े पहन तैयार हुए। विपदा जिस पर पड़ती है वही उसका दर्द जान सकता है। इस एक छोटी सी घटना ने नेताजी का चरित्र परिवर्तन कर डाला। उसी समय आपदा पीड़ितों की सहायता और राहत कार्य करने का दृढ़ संकल्प कर लिया।
“अब कुछ दिन घर न आ सकूँगा, अपना ख्याल रखना” कहकर जब नेताजी घर से निकले तो पत्नी निर्मला आँखों में आँसू लिए गर्व की दृष्टि से उनकी गाड़ी को दूर तक देखती रही।

3 Likes · 3 Comments · 548 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
रूठी हूं तुझसे
रूठी हूं तुझसे
Surinder blackpen
शिक्षा अपनी जिम्मेदारी है
शिक्षा अपनी जिम्मेदारी है
Buddha Prakash
लड्डु शादी का खायके, अनिल कैसे खुशी बनाये।
लड्डु शादी का खायके, अनिल कैसे खुशी बनाये।
Anil chobisa
क्या यह महज संयोग था या कुछ और.... (1)
क्या यह महज संयोग था या कुछ और.... (1)
Dr. Pradeep Kumar Sharma
💐प्रेम कौतुक-413💐
💐प्रेम कौतुक-413💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
ईश्वर है
ईश्वर है
साहिल
सत्य की खोज
सत्य की खोज
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
"चंचल काव्या"
Dr Meenu Poonia
धूर्ततापूर्ण कीजिए,
धूर्ततापूर्ण कीजिए,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
"आज का आदमी"
Dr. Kishan tandon kranti
खद्योत हैं
खद्योत हैं
Sanjay ' शून्य'
जबसे तुमसे लौ लगी, आए जगत न रास।
जबसे तुमसे लौ लगी, आए जगत न रास।
डॉ.सीमा अग्रवाल
शांति तुम आ गई
शांति तुम आ गई
Jeewan Singh 'जीवनसवारो'
आज कृत्रिम रिश्तों पर टिका, ये संसार है ।
आज कृत्रिम रिश्तों पर टिका, ये संसार है ।
Manisha Manjari
पहले पता है चले की अपना कोन है....
पहले पता है चले की अपना कोन है....
कवि दीपक बवेजा
सावनी श्यामल घटाएं
सावनी श्यामल घटाएं
surenderpal vaidya
ONR WAY LOVE
ONR WAY LOVE
Sneha Deepti Singh
जिंदगी में जो मिला सब, सिर्फ खोने के लिए(हिंदी गजल गीतिका)
जिंदगी में जो मिला सब, सिर्फ खोने के लिए(हिंदी गजल गीतिका)
Ravi Prakash
सरोकार
सरोकार
विनोद वर्मा ‘दुर्गेश’
मदमती
मदमती
Pratibha Pandey
!! युवा मन !!
!! युवा मन !!
Akash Yadav
जीवन का इतना
जीवन का इतना
Dr fauzia Naseem shad
आतंकवाद सारी हदें पार कर गया है
आतंकवाद सारी हदें पार कर गया है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
बाबू
बाबू
Ajay Mishra
नश्वर संसार
नश्वर संसार
Shyam Sundar Subramanian
हार कभी मिल जाए तो,
हार कभी मिल जाए तो,
Rashmi Sanjay
एक रूपक ज़िन्दगी का,
एक रूपक ज़िन्दगी का,
Radha shukla
पहला प्यार
पहला प्यार
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
आदमी का मानसिक तनाव  इग्नोर किया जाता हैं और उसको ज्यादा तवज
आदमी का मानसिक तनाव इग्नोर किया जाता हैं और उसको ज्यादा तवज
पूर्वार्थ
#लघुकथा / #विरक्त
#लघुकथा / #विरक्त
*Author प्रणय प्रभात*
Loading...