“चरित्र और चाय”
“चरित्र और चाय”
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सरल शब्दों में समझाऊं आज मैं ,
चरित्र निर्माण की कहानी।
मानव चरित्र भी होती है,
एक प्याली चाय की दीवानी ।
अंग्रेजी के टी के उच्चारण में हैं_
तीन अक्षर टी, इ और ए।
टी से थाॅट समझो अर्थात विचार,
यही है ऊर्जा की चाबी।
जो हमे काम करने के लिए,
प्रेरित करती है,धकेलती है।
दूसरा अक्षर इ का मतलब इमोशन,
ये इमोशन या मनोभाव,
विचार से ही पैदा होती हैं,
और दिल में ढेर सारे अरमान जगाती हैं।
फिर तीसरा अक्षर ए अर्थात एक्शन आया,
एक्शन या क्रिया से ही हमारा वर्तमान बनता,
जो कि मनोभाव के इशारे पर है नाचता।
यदि जीवन के ये तीनों पहलु,
विचार, मनोभाव और क्रिया को,
एक साथ मिलाकर समुच्चय हम बनाते ,
तो खुद-ब-खुद मनुष्य का चरित्र बन जाते।
तो हो गया न आदमी का चरित्र भी,
एक चाय( टी इ ए) का प्याला।
रोगी मानव यदि भविष्य में,
पहलवान बनने का विचार ठान ले ,
तो भविष्य में जरूर पहलवान बन जाए।
और एक मोटा ताजा पहलवान भी,
हो जाए यदि रुग्ण विचारों से ग्रसित,
फिर स्थूलकाया भी हो जाएगी उसकी,
जीर्ण-शीर्ण परिवर्तित।
यदि हम विचाररूपी ऊर्जा के इस खेल को,
समझ पाए तो वो ऊर्जा का जनक,
सूरज करता है इस जीवन को उजियारा ,
और जो मूढ़ नहीं समझ पाया इस रहस्य को,
उसके लिए रवि बन जाता एक दहकता अंगारा।
चरित्र की गाथा समझाने का,
मकसद पूरा हो गया हमारा।
यदि अब भी समझ में नहीं आया ,
तो फिर से पियो एक कप चाय का प्याला,
और बारम्बार पढ़ो ये जीवन का इशारा।
समझो मानव चरित्र और चाय का इशारा।।
मौलिक एवं स्वरचित
© *मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १३/०६/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201
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TEA =चाय
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T= Thought =विचार
E= Emotion=मनोभाव (संवेग)
A =Action =क्रिया
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