चरित्रार्थ होगा काल जब, निःशब्द रह तू जायेगा।
हुई स्वार्थ की पराकाष्ठा, तो व्यक्तित्व गिरता जायेगा,
ये सत्य एक दिन, तेरी संवेदनाओं को भी सतायेगा।
व्यंग का पात्र कब तक, तू औरों को बनायेगा,
काल के आघात से, तू भी नहीं बच पायेगा।
निर्मोह और निर्ममता का इतिहास, भले तू रचायेगा,
पर स्मरण रख तेरी मृत्यु पर, अश्रु ना कोई बहायेगा।
दम्भ वस्तुवाद का, भरता तू रह जायेगा,
और मसान में वस्तु की भाँति, कोई तुझे भी जलायेगा।
ईर्ष्या और घृणा की नदी में, डुबकी जो आज लगायेगा,
कल भस्म में परिवर्तित हो, पैरों तले रौंदा जायेगा।
विश्वास को छल कर, जो शीर्ष पर मुकुट चढ़ायेगा,
समर्पण भरे प्रेम का वियोग, तुझे भी कल रुलाएगा।
शब्दों के विषाक्त बाण, औरों पर जो चलायेगा,
छवि उनकी भी देखने को, वो ईश्वर तुझे तरसायेगा।
अहंकार की आर ले, चरित्र पर ऊँगली उठायेगा,
चरित्रार्थ होगा काल जब, निःशब्द रह तू जायेगा।