चम्पा पुष्प से भ्रमर क्यों दूर रहता है
दोहा हो बिन तथ्य का , ज्यो चम्पा का फूल |
तेरह- ग्यारह भार का , सभी मानना धूल ||
(दोहा में तथ्य युक्त कथ्य होना चाहिए , तभी वह
असरकारी /अमर होता है )
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चौकड़िया छंद ( चम्पा पुष्प के बारे में )
रहे अकेली चम्पा फूली , अपने रँग में भूली |
भँवरा पास न आता उसके, समझे उसको धूली ||
गंध सुँघाती बुला-बुला कर, भँवरा कहता झूली |
राज खोजने गया सुभाषा, चम्पा क्यों है लूली ||
रंग गंध से लगती दानी , पर है अजब कहानी |
भँवरा कहता बाँझ हृदय की,लगती है अभिमानी ||
मिला भ्रमर से वहाँ सुभाषा , सुनकर बातें जानी |
नहीं परागा चम्पा रखती , रूखी है पटरानी ||
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पुन: दोहा छंद में
भँवरा रहता दूर है , देता कभी न मान |
चम्पा तड़फे रात दिन ,पाने को प्रति दान ||
भँवरा रस का लालची , जिसको कहें पराग |
चम्पा में होता नहीं , जिससे जाता भाग ||
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धार्मिक मान्यता –
नारद जी के शाप से, चम्पा शिव से दूर |
जब की भोले चाहते , हमें चढ़े भरपूर ||
नारद के अभिशाप से , चम्पा हो गइ बाँझ |
खुश्बू अपनी फेंककर , रोती रहती साँझ ||
( जहाँ तक नारद अभिशाप की बात है , शायद सभी को ज्ञात होगा )
भगवान शिव को चंपा फूल पसंद है , लेकिन इस फूल को भगवान शिव की पूजा से दूर रखा जाता है।
एक बार नारद मुनि को पता चला की किसी ने अपनी बुरी इच्छाओं के लिए पूरा करने हेतु भगवान शिव जी के मनपसंद चंपा के फूल तोड़कर पूजा प्रारंभ कर दी है | नारद जी दौड़े आए व वृक्ष्र से पूछा कि क्या किसी ने उसके फूलों को तोड़ा है तो पेड़ ने इससे इंकार कर दिया।
लेकिन वह पूजा कर , शिव जी से वरदान लेकर चला गया था कि मैं जिस दिन जहाँ भी आपको चम्पा का पुष्प चढाऊगाँ , आप हमारी मनोकामना पूरी करेगें
जब नारद ने भगवान से उसकी मदद करने का कारण पूछा तो भगवान शिव ने कहा कि उसने चंपा के फूल से मेरी पूजा की थी उसे वो मना नहीं कर पाए है
इसके बाद नारद मुनि वापस आए और चंपा के वृक्ष को शाप दे दिया कि उसके फूल कभी भी भगवान शिव की पूजा में स्वीकार नहीं किए जाएंगे, व तेरे पुष्प पराग हीन रहेगें
क्योंकि वृक्ष ने उनसे झूठ बोला था और उन्हें गुमराह करने की कोशिश की थी । जिसके बाद से आज तक भगवान शिव को अपने पसंदीदा फूल से दूर रहना पड़ता है।
श्री तुलसीदास जी भी श्री रामचरित मानस में लिखते हैं –
तेहिं पुर बसत भरत बिनु रागा | चंचरीक जिमि चम्पक बागा ||
इसी तरह भगवान शिव जी द्वारा केतकी पुष्प को भी अभिशाप है व तुलसी पत्र शिव जी स्वीकार नही करते है , सबके अपने कारण है
सादर
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सुभाष सिंघई