चमत्कार
चमत्कार-
ओंकारेश्वर में सालिग राम समूह के समर्पण खंडवा के जंगलों एव असा अहीर के किले के दहसत खौफ डर की समाप्ति पर मीडिया ने सुर्खियों में स्थान दिया उस समय सोसल मीडिया व्हाट्सएप ट्यूटर फेसबुक इंस्टाग्राम नही थे टी वी भी नही था था तो सिर्फ प्रिंट मीडिया एव रेडियो जिसके माध्यम से आशीष उर्फ बल गोपाल को बहुत ख्याति मिली बाल गोपाल के कार्यो में सहयोग के लिए दीपक मित्रा माधव होल्कर गार्गी माहेश्वरी एव सनातन दीक्षित को भी बहुत ख्याति एव प्रतिष्ठा मिली।
उज्जैन के महाकाल युवा समूह एव महादेव परिवार में उत्सव का उत्साह था आखिर उनके महाकाल के भक्त द्वारा ही इतने बड़े एव खतानाक अभियान को अनोको जोख़िम एव खतरों का सामना करते हुए पूरा किया गया था जिससे जन खंडवा के गौरव एवं सम्मान को बहाल करने में बहुत महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया जो मिल का पत्थर सावित हुआ ।
ओंकारेश्वर महादेव के दर्शनार्थियों की संख्या में बृद्धि होने लगी जो डर एव भय के कारण सीमित हो गयी थी ओंकारेश्वर महादेव के प्रमुख पण्डित सनातन दीक्षित जी ने बाल गोपाल से कुछ दिन ओंकारेश्वर रुकने के लिए अनुरोध किया बाल गोपाल को इंटरमीडिएट की परीक्षा देनी थी जो वह महाकाल से ही देना चाहता था अतः उसने अपनी मंशा को सनातन जी को बताया फिर भी दीक्षित जी ने बड़ी विनम्रता से अनुरोध किया जिसे पुत्र समान बाल गोपाल ने इनकार करने को मंशा त्याग दिया और दीक्षित जी से बड़ी विनम्रता पूर्वक अनुरोध किया कि जब उसे परीक्षा की तैयारी करनी होगी चला जायेगा ।
बाल गोपाल शिप्रा से नर्वदा तट पर ओंकारेश्वर ममलेश्वर संयुक्त शिव प्रकाश के ज्योतिलिंग की सेवा सानिध्य में आ गया सनातन जी ने ओंकारेश्वर के सभी पूज्य एव समकक्षों को आमंत्रित किया आशीष उर्फ बाल गोपाल को किसी परिचय की आवश्यकता नही थी उंसे ओंकारेश्वर में भी सभी लोग जानने लगे थे सनातन दीक्षित जी ने बाल गोपाल द्वारा महाकाल में किये गए सराहनीय कार्यो की चर्चा और परिणाम तथा महाकाल एव उज्जैन परिक्षेत्र में उसके प्रभाव से लोंगो को अवगत कराया ओंकारेश्वर के विद्वत मण्डल ने बाल गोपाल के धार्मिक आदर्श आचरण के लिए संकल्प लिया।
आशीष ओंकारेश्वर में बाल गोपाल के नाम से विख्यात था सुबह नर्मदा नदी स्नान एव मंगला एवं नैवेद्य आरती एव शयन आरती आदि कार्यक्रमो में नित्य बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेता बाल गोपाल सनातन शिव भक्ति की गहराई का बड़ा ज्ञाता भी बन चुका था अब वयस्क एव ज्ञानी आदरणीय विद्वत जनों में शुमार हो चुका था लेकिन एक विशेष बात जो उसमें थी वह यह कि वह बड़ी बेवाकी से स्वयं को कायस्त कुल का कहता और गर्व करता।
बहुत से युवा आरक्षण आदि पर आक्रोशित दिखते और जब भी बाल गोपाल से मिलते उन्हें बड़ी बारीकी से समाज की संरचना एव उसकी समान ईश्वरीय अवधरणा पर अपने सकारात्मक विचारों से संतुष्ट कर देता और प्रत्येक परिस्थितियों में एक देश भक्त और शिव भक्त की तरह अपने उद्देश्यों के पथ को खोज उस पर निकल पड़ता ।
ओंकारेश्वर शिव लिंग दो पहाड़ियों के मध्य ॐ के आकार पर बसा है मान्यता है इसे राजा मान्धाता ने स्थापित किया था और यहाँ आदिवासी जनसंख्या बहुसंख्यक है ।
बाल गोपाल को ओंकारेश्वर में कुछ दिन ही रुकना था जो पहले से ही निर्धारित था लेकिन ओंकारेश्वर में कुछ विशेष शिव भक्ति की परंपरा में जन कल्यार्थ करने की प्रबल इच्छा ने जन्म ले लिया इसके परिपेक्ष में बाल गोपाल ने सनातन दीक्षित जी के समक्ष एक बहुत सकारात्मक विचार प्रस्तुत किया बाल गोपाल ने सनातन जी के समक्ष जन जातीय समाज की शिक्षा के लिए ओंकारेश्वर द्वारा विशेष व्यवस्था करने का अनुरोध किया ।
सनातन जी को बाल गोपाल का विचार बहुत प्रभावित कर गया और उन्होंने जन जातीय लोंगो से बच्चों के लिए शिक्षा के लिए ओंकारेश्वर के सभी वर्गों संत समाज से विचार विमर्श करते हुए सर्व सहमति से ओंकारेश्वर जन जातीय विकास एव शिक्षा समिति की स्थापना किया और शिक्षा हेतु विद्यालय की स्थापना की बाल गोपाल को ओंकारेश्वर द्वारा वहाँ की जन जातीय संस्कृति एव शिक्षा के संयुक्त विकास की लौ जलाने के लिए सनातन दीक्षित के प्रति कृतज्ञ होते हुए विचार को व्यवहारिक रूप में उतारने के लिए कार्य योजना सनातन दीक्षित जी के नेतृत्व में बनाने और लागू करने के लिए आवश्यक कार्य जल्दी जल्दी पूर्ण करने के लिए दीक्षित जी के साथ स्वय आवश्यक भाग दौड़ शुरू किया ।
बाल गोपाल ने दूसरा महत्वपूर्ण सुझाव दिया कि ओंकारेश्वर के आस पास जितने भी दर्शनीय सनातन छोटे बड़े मंदिर है उनके संत साधु समाज को एक स्वछ सार्थक दृढ़ निरपेक्ष समूह बनाएं रखना आवश्यक है जिससे कि सम्पूर्ण ओंकारेश्वर परिक्षेत्र में जनता एव सनातन समाज के मध्य सामंजस्य कायम हो सके साथ ही साथ धर्म के प्रति विचारों में दृढ़ता कायम रहे क्योकि धर्म से ही समाज है और समाज से राष्ट्र ।
सनातन दीक्षित जी स्वयं बहुत विद्वान ज्ञानी और सकारात्मक विचारों के आदरणीय व्यक्तित्व थे उन्हें बाल गोपाल के दोनों प्रस्ताव शिव भक्ति एव समाज धर्म दोनों के लिये आवश्यक एवं महत्वपूर्ण लगी।
सनातन दीक्षित जी बाल गोपाल के दोनों प्रस्तावों को यथा शीघ्रता से उसके महाकाल लौटने से पूर्व लागू कर देना चाहते थेओंकारेश्वर के संत समाज एव जन मानस में बहुत तेजी से ये दोनों प्रस्ताव चर्चा के विषय बन गए और इसे मूर्त रूप में फलते फूलते देखने की अभिलाषा जागृत हो गयी।
सनातन दीक्षित जी ने सर्वप्रथम ओंकारेश्वर जन जातीय शिक्षा समिति गठन किया और सदस्यों पदाधिकारियों के नामो के साथ बायलॉज नियमवावली आदि आवश्यक प्रपत्रों को तैयार कर खंडवा प्रशासन को प्रेषित किया प्रशासन तो जैसे इंतजार ही कर रहा था तुरंत कुछ छोटी छोटी बातों के स्पष्टीकरण के बाद जन जातिय समुदाय के शैक्षिक उत्थान के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
अगले शैक्षिक सत्र से विधिवत शैक्षिक गतिविधियों के संचालन की प्रक्रिया तेज हो गयी ।
बाल गोपाल के दूसरे प्रस्ताव जिसे सनातन जी जटिल मानते थे क्योकि हर मंदिर के साधु संत समाज की अपनी मान्यता एव मर्यादाये थी जिसके कारण अपने सीमित दायरे के इतर कुछ भी नही सोच सकते थे फिर भी बाल गोपाल की इच्छा को रखने के लिए ओंकारेश्वर के आस पास जितने भी मंदिर केदारेश्वर, ऋण मुक्तेश्वर, सिद्धनाथ मंदिर,कैलाश धाम,पाताली हनुमान, गौरी सोमनाथ ,गजानन मंदिरों के साधु संतों को बड़ी विनम्रता से आमंत्रित किया।
बडे आदर सत्कार के बाद बाल गोपाल को आमंत्रित किया अपने विचारों को प्रस्तुत करने के लिए बाल गोपाल ने अपना संबोधन ही शुरू किया संत समाज मे कोई छोटा या बड़ा नही होता है यहाँ एकत्रित विद्वत धर्म ध्वज विल्कुल यह ना समझे कि ओंकारेश्वर द्वादश ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन राज्य या राज तभी महत्वपूर्ण होता है जब उसे महत्वपूर्ण बनाने वाले लोगो कि महत्त्व एव महिमा कायम रहे भगवान शिव स्वयं नंदी और गणों को बहुत आदर सम्मान देते है और गण उनकी भक्ति की हस्ती मस्ती में रहते है ।
ओंकारेश्वर के सभी मंदिर महत्वपूर्ण है एव उनके सनातन धर्म मे महत्वपूर्ण स्थान है उसी प्रकार वहाँ का संत समाज भी उतना ही आदरणीय एव महत्वपूर्ण है अतः मेरा अनुरोध है कि आप सभी आपस मे संवाद एव समभाव से एक दूसरे का आदर सम्मान करते हुए ओंकारेश्वर महादेव के चतुर्दिक विकास से इसके धार्मिक एव ऐतिहासिक महत्व को महिमा मंडित करते हुए सार्थक सकारात्मक सनातन धर्म मर्म की धारा के प्रवाह को प्रवाहित करने में अपनी योग्यता दक्षता का सदुपयोग करे।
बाल गोपाल के विचारों का कही से विरोध नही हुआ और सनातन दीक्षित जी को संत समाज ने अपना मार्गदर्शक स्वीकार कर कुछ नियम निर्धारित किये सनातन जी को अंदाज़ नही था कि संत समाज ओंकारेश्वर का एकात्म इतनी शीघ्रता से बनाना स्वीकार कर लेगा लेकिन सत्य यही था सनातन दीक्षित जी को लगा साक्षात शिव शंकर ने सबको शुभ संदेश स्वय दिए हो ।
ओंकारेश्वर का वातावरण तो पहले भी शांति सौहार्द एव विकासोन्मुख था चारो तरफ हरियाली प्रकृति की छटा निराली साफ सुथरा बाल गोपाल के विचारों और सनातन जी के गम्भीर प्रयासों से उसमें और भी निखार चमक परिलक्षित होने लगी चारो तरफ बाल गोपाल सनातन दीक्षित की चर्चा होने लगी धीरे धीरे जुलाई का महीना आ गया और बाल गोपाल को महाकाल लौटना था कारण इंटरमीडिएट का फार्म भरना था सनातन दीक्षित ने बाल गोपाल को गणेश चतुर्दसी तक रुकने का अनुरोध क्या किया रोक ही लिया।
गणेश चतुर्दशी ओंकारेश्वर के महत्वपूर्ण अनुष्ठान त्यवहारो में शुमार है प्रतिदिन दर्शनार्थियों ताता लगा रहता है।
मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के आदिवासी समाज के सेना के अधिकारी थे विराज कानू वह भी गणेश चतुर्दसी में ओंकारेश्वर घूमने सिर्फ इसलिए आये थे कि उन्हें कही से पता चल गया था कि ओंकारेश्वर ज्योतिलिंग के संत श्री सनातन जी द्वारा आदिवासी शिक्षा हेतु सार्थक गम्भीर प्रायास किये जा रहे है उसे देखने वास्तव में वो सनातन धर्म की मान्यताओं में विश्वास नही रखते थे विशुद्ध वैज्ञानिक सोच के व्यक्ति थे उनके आने का मकसद था पर्यटन घूमने फिरने का ना कि कोई धार्मिक।
विराज कानू के साथ उनकी पत्नी तान्या जो स्वयं सेंना के मेडिकल कोर में वरिष्ट चिकित्सक थी एव अठ्ठारह वार्षिय एक मात्र बेटा तरुण था मतलब सारा परिवार साथ था।
विराज कानू सबसे पहले ओंकारेश्वर के प्रमुख सनातन दीक्षित जी से मिलकर उन्हें आदिवासी शिक्षा के लिये किये जा रहे प्रयास के लिए आभार व्यक्त किया और फिर बाल गोपाल से मिले और अपने बेटे तरुण को बताया कि बाल गोपाल की उम्र मात्र तुमसे एक वर्ष अधिक है और इतनी छोटी आयु में इन्होंने ख्याति और लोंगो का प्यार जितना पाया है पूरा जीवन संघर्ष एव चुनौतियों के बाद भी नही मिल पाता तरुण तुमको इनसे कुछ सीखना चाहिए तरुण भी अपने प्रवास के दौरान बाल गोपाल से मिलने आता रहता।
विराज कानू परिवार के साथ ओंकारेश्वर के घाटों दार्शनिय स्थलों एव गुरुद्वारा ओंकारेश्वर साहिब जहाँ कभी गुरुनानक जी के चरण कमल पड़े थे के भ्रमण के बाद लौटने से पहले आखिरी रात होटल के अपने होटल के सूट में आए उनको सुबह ही निकलना था रात को खाना खाने के बाद विराज कानू तान्या एक बेड पर एव तरुण अलग बेड पर सोने चले गए ।
एका एक रात के डेढ़ दो बजे तरुण ने चिल्लाना शुरू कर दिया मम्मी पापा देखो कुछ काट लिया बहुत तेज दर्द हो रहा है विराज तान्या एक साथ उठे और लाइट जलाई दोनों पति पत्नी के होश उड़ गए तरुण के विस्तर पर किंग कोबरा काला भुजंग फन निकले बैठा है जो उनके बेटे तरुण का काल बन चुका था ।
लाइट जलते और चिल्लाते शोर शराबा सुन कोबरा पता नही कहा चला गया कुछ ही देर में तरुण ने दम तोड़ दिया तान्या माँ थी और डॉक्टर भी उसने बेटे तरुण की जांच किया और बोली तरुण इज नो मोर और चिल्ला कर रोने लगी वह समझ चुकी थी उसकी कोख उजड़ चुकी है और वह संतान हीन हो चुकी है ।
चारो तरफ अफरा तफरी का वातावरण बन गया विराज सेना का बड़ा अधिकारी था अतः उसके ओंकारेश्वर के कार्यक्रमो के विषय मे प्रशासन एव पुलिस को जानकारी थी छोटा कस्बा है ओंकारेश्वर रात में सब नीद से जाग गए और सब विराज के होटल की तरफ भागते एक दूसरे से तरह तरह की बाते करते तान्या तड़फ तड़फ कर रोती और कहती सारा दोष तुम्हारा है तुम नास्तिक हो देखो तुम्हे भगवान ने क्या से क्या बना दिया।
विराज सेना का अधिकारी आय दिन मौत से खेलता था मगर आज उसके बेटे की बात थी वह पत्थर की चट्टान की तरह खड़ा पत्नी के दर्द के जख्मो से निकले तानों को सुन रहा था और ऐसे घायल हो रहा था जैसे सीमा पर किसी शत्रु की सेना टुकड़ी उस पर चौतरफा गोलियों की बौछार कर रही हो ।
विराज एका एक उठा ट्राइवर से गाड़ी निकलवाया और तरुण के शव को लेकर तान्या के साथ निकल पड़ा वह केदारेश्वर, ऋणमुक्तेश्वर, सिद्धनाथ, पाताली हनुमान, गौरी सोम नाथ,गजानन मंदिर एक एक कर सब जगह गया और तरुण के शव को मंदिरों के सामने रख सिर्फ इतना कहता तुम सच्चे देव हो तो इसे जीवित करो मै तुम्हारी रक्षा में सरहदों पर खड़ा अपना खून ना जाने किंतनी बार बहाया है नही तो आज तुम गजनवी के जज्बे और जुनून से लुट लिए गए होते किसी बाबर के ताकत से तोड़ ध्वस्त कर दिए गए होते।
मैं नास्तिक कैसे हो सकता जबकि सनातन संस्कृति और उसकी मर्यादा की रक्षा में पल प्रति पल लड़ता हूँ सुबह के दस बज चुके थे चूंकि विराज सेना का उच्च अधिकारी था प्रशासन को उसके पुत्र के मृत्यु की सूचना मिली तब वह भी मौजूद था लेकिन विराज के इस अजीब हरकत से प्रसाशन को लगा कि विराज एकलौते बेटे की मृत्यु के कारण मानसिक संतुलन खो बैठा है मगर किसी में कोई जोर जबरजस्ती भी करने की हिम्मत नही थी बात एक उच्चस्तरीय सेना अधिकारी की थी ।
अंत में विराज अपने बेटे को लेकर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के समक्ष मंदिर के फर्श पर बेटे के शव को लेटा दिया और जोर जोर से चिल्लाने लगा तेरी रक्षा में हम अपना खून बहाते है तब तेरा अस्तित्व है नही तो आज जहां तू बैठा है नही होता किसी आक्रांता के पागलपन का शिकार हो चुका होता तुझे मेरे बेटे तरुण को वापस देना होगा मैं तब तक तेरा इंतजार करूँगा जब तक तरुण जिंदा ना हो जाय ।
खंडवा का पूरा प्रशासन लगा था कोई विराज से कुछ भी कहने की हिम्मत नही कर पा रहा था ओंकारेश्वर का संत समाज सनातन दीक्षित एव बाल गोपाल सभी किंकर्तव्यविमूढ़ खड़े थे एका एक बाल गोपाल के मन मे लगा कि लोहा लोहे को काटता है अतः जो विराज कह रहा है हां में हां मिलाने में हर्ज ही क्या है?
वह झट विराज के विल्कुल करीब पहुंच गया अब तक किसी को फौजी के आस पास भी फटकने की हिम्मत नही हो रही थी और बोला आप सही कह रहे है सनातन के देवो का अभीष्ट है सांप भगवान विष्णु शेष नाग शय्या पर शयन करते है तो स्वय शिव गले मे लपेटे रहते है निश्चित ही आपकी वेदना की पुकार से निकलेगा जादू का मंत्र और तरुण आपको हंसते खेलते मिलेगा ।
बाल गोपाल को खुद ही नही पता वह क्या कह रहा है उसने सोचा कि धीरे धीरे विराज स्वंय बेटे तरुण के जीवित होने का विश्वास छोड़ देगा लेकिन उसे यह भी भय अंदर अंदर खाये जा रहा था कि विराज इतना जुनूनी हो चुका है कि यदि उसकी आस्था को वास्तविकता नही मिली तो वह कहर बन कर टूट पड़ेगा सबसे पहले हमें ही मारेगा मगर बाल गोपाल ने यह मान लिया कि मरना तो जबको एक ना एक दिन है विराज के हाथों मरने में क्या बुराई है ?
इसके जुनून एव द्वेष के प्रतिशोध में मर भी जाय तो कोई बात नही हिम्मत जुटाई और सनातन दीक्षित से बोला महाराज भस्म भोले भंडारी के आरती की भस्म मगवाए सनातन जी ने बिना बिलंब आरती की भस्म मंगवाई तरुण के पूरे शरीर पर लगवाया एव काले कपड़े से ढक दिया।
हिम्मत किसी की विराज के समक्ष बाल गोपाल ने कहा विराज जी अपने ना जाने कितनी मोते देंखी है सीमाओं पर सैनिक दर्द से परे होता है आप धैर्य रखें भोले भंडारी सब कुशल करेगा तरुण के शव को ओंकारेश्वर की आरती का भस्म पूरे शरीर पर लगा दिया गया है काले कपड़े से ढंक दिया गया है।
आप धैर्य रखें जिस समय कोबरा ने काटा है ठीक उसी समय यानी चौबीस घण्टे बाद तरुण पर विष का प्रभाव कम होने लगेगा और वह जीवित होगा ।
तांन्या बोली आप लोग क्यो विराज को झूठी दिलाशा दे रहे है तरुण मर चुका है और मुर्दा जिंदा नही होते आप लोग विराज से कुछ भी कहने से पहले सौ बार सोचे वह वही पकड़ कर बैठ जाएगा आप लोंगो के लिए अलग मुसीबत खड़ी हो जाएगी जो बहुत दुःखद होगी मैं डॉक्टर हूँ जानती हूँ कुंछ नही हो सकता है यदि स्नेक बाइटिंग के चार पांच मिनट के अंदर एन्टी डोज लग गया होता तो तरुण का बचना संम्भवः था जब तरुण स्नेक बाइटिंग के बाद चिल्लाया तब तक समय समाप्त हो चुका था हम लोंगो ने उस जहरीले सांप को देखा था पहाड़ों में पाया जाने वाला कोबरा था आपने क्यो विराज से चौबीस घण्टे की बात कह दी सनातन जी भी दुविधा और बाल गोपाल की प्रतिष्ठा में अन्दर ही अंदर बहुत क्रोधीत थे जिसे भांपते हुए बाल गोपाल बोला महाराज इस समय धैर्य एव सयंम की आवश्यकता है आप आराम करें मैं तरुण के शव के पास बैठ कर पंचाक्षरी मंत्र ॐ नमः शिवाय का जाप करता हूँ ताकि विराज को विश्वास हो जाय कि वास्तव में उसकी आस्था वास्तविकता को प्राप्त होगी ।
पूरे दिन ओंकारेश्वर में अफरा तफरी का माहौल था आस पास गांवो के लोग भी आते नज़ारे को देखने और तरह तरह की बाते करते शाम हुई इधर बाल गोपाल भिड़ में भी एकात्म भाव से तरुण के पास पंचारक्षरि मंत्र का जाप करता रहा ।
रात हुई पहली बार ओंकारेश्वर में शयन आरती नही हुई रात के बारह बजे जैसे ही तरुण को सांप के काटे चौबीस घण्टे पूर्ण हुये काले चादर में तरुण के शरीर मे हरकते होने लगी पल भर में बात बिजली की तरह फैल गयी तरुण जीवित हो गया ।
ओंकारेश्वर महादेव की कृपा वास्तव में तरुण उठ कर बैठ गया और सबसे पहले बोला पापा कल का सोया मैं आप लोंगो ने मुझे उठाया क्यो नही तरुण ने अपने ऊपर पड़े काले कपड़े को ज्यो ही उठाया वही कोबरा जिसने चौबीस घण्टे पूर्व तरुण को डसा था धीरे धीरे निकला और तरुण कि माँ तान्या के दोनों पैरों के ऊपर होता हुआ ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के ऊपर चढ़ता हुआ पता नही किधर अदृश्य हो गया इस दृश्य को वहाँ उपस्थित हज़ारों लोंगो ने देखा ।
विराज ने बाल गोपाल और सनातन दीक्षित जी को गले लगा लिया तांन्या भी दोनों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते नही अघा रही थी चारो तरफ ॐ ओंकारेश्वर की गूंज से रात में दिवस जैसा वातावरण हो गया सनातन महराज ने रात्रि तीन बजे शयन आरती किया ।
तरुण जिंदा हुआ ओंकारेश्वर के आशीर्वाद के जादू के चमत्कार से ओंकारेश्वर के भस्म ने जादू कर दिया ओंकारेश्वर में चारो तरफ प्रशन्नता का वातावरण पुनर्स्थापित हो गया ।
चारो तरफ ओंकारेश्वर महादेव के भस्म के जादू एव चमत्कार से खंडवा एव ओंकारेश्वर चमत्कृत हुआ आधुनिक विज्ञान को जानने मानने वालों में भी शिव शक्ति के विश्वासः का सांचार का प्रवाह हुआ ।
विराज बोला सनातन जी आपके आदिवासी विकास एव शिक्षा प्रसार के संकल्प को सिद्धि की ऊंचाई तक हम पहुंचाएंगे चारो तरफ जय जय ओंकारेश्वर ॐ ओंकारेश्वर जय जय सनातन जी जय बाल गोपाल के जय घोष से अम्बर गुंजायमान हो गया।
सुबह हो चुकी थी तांन्या विराज एव तरुण ओंकारेश्वर का आर्शीवाद लेकर निकले ।
प्रति वर्ष विराज पत्नि तांन्या एव तरुण के साथ ओंकारेश्वर आते उनको देखते ही ओंकारेश्वर वासी कहते ओंकारेश्वर के आशिर्वाद का ॐ परिवार ओंकारेश्वर का अभिनंदन अभिमान।।
नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश।।