चमचा चमचा ही होता है…….
एक चमचा सोने का होता, एक चमचा चांदी का होता है,
एक चमचाअद्भुत -सा होता,एक चमचा अमूर्त भी होता है।
एक चमचा कीमती होता,एक चमचा कीमती कम होता है।
इन सभी का काम एक है, इनसे बर्तन ही खाली होता है ।।
जहां चमचा काम न आए, झट वहां से फेंका जाता है,
मान नहीं मिलता है उसको, फिर बड़ा ही पछताता है।
आत्म ग्लानि बहुत है होती, खूद को बड़ा ही तड़पाता है, चमचागिरी के चक्कर में, स्वयं चक्कर में पड़ जाता है।।
थक हार कर एक चमचा ,चमचों की पंचायत बुलाता है,
मामला गंभीर बना किसी को, कुछ समझ नहीं आता है।
चमचों में चर्चा चली मिट्टी का, चमचा मान क्यों पाता है, चमचागिरी में सब उम्र गुजारी, अब कोई नहीं बुलाता है।।
मिट्टी का जो चमचा होता ,मिट्टी में ही मिल जाता है,
अलग जो चमचा होता है ,वह अग्नि में गलाया जाता है ।
गरीब घर मिट्टी का चमचा,महंगा धनी घर पाया जाता है ,
मिट्टी चमचा पाता आदर, महंगा चमचा ठोकरे खाता है।।