चमका फिर से सूरज नवीन
धरती को करने तम-विहीन
चमका फिर से सूरज नवीन
उल्लास लिये संचरित हुए
गतिमय शनैः फिर त्वरित हुए
मानव, खग-मृग, पशु, विटप, मीन
चमका फिर से सूरज नवीन
किलकारी भरते नौनिहाल
गाते पंछी स्वर मधुर ताल
दोनों सुर-संगम में प्रवीन
चमका फिर से सूरज नवीन
शैशव, यौवन, वृद्धावस्था
है सुबह दोपहर शाम यथा
हर दिन के होते खण्ड तीन
चमका फिर से सूरज नवीन