चन्द्रशेखर आजाद
महान क्रान्तिकारी शहीद चन्द्रशेखर आजाद जी की जयन्ती पर प्रस्तुत है मेरी नवीनतम रचना-
अंग्रेजों का सदियों से मुल्क ये गुलाम था
जुल्म,ज्यादती का घोड़ा बेलगाम था
सूरज चुरा लिया उन्होने आसमान का
छीन ली फसल था बहाना लगान का
आँखों में आँसू भर के थी आँखें निहारती
जकड़ी हुई थी बेड़ियों में मात भारती
था यक्ष प्रश्न किस तरह ये वक्त़ जायेगा
जुल्मोंसितम से लड़ने यहाँ कौन आयेगा
दारुण पुकार सुन प्रकृति ने फैसला किया
इक और सूर्य उसने फ़लक पर उगा दिया
प्रदेश मध्य राज जिला ग्राम भाँवरा
रानी माँ ने गर्भ में धारण उसे किया
सीताराम बन के पिता खूब खिल उठे
मुखड़ा जो देखा तो सभी के झूम दिल उठे
बालक तिवारी जी का था सुंदर व सलोना
बन गया था वास्ते सबके वो खिलौना
वक्त़ के संग पैरों पर अपने खड़ा हुआ
छोटा सा चन्द्रशेखर ज्यों ही बड़ा हुआ
माँ चाहती थी बेटा पढ़े जा के काशीपुर
विद्वान संस्कृत का थी बनाने को आतुर
आदेश प्रभु का जैसे ही बालक वो पा गया
काशी विद्यापीठ बनारस को आ गया
लेकिन पढ़ाई में ही न वो चूर रह सका
मुल्क के हालात से न दूर रह सका
अब देश के लिए था वो भी बोलने लगा
देख अत्याचार खून खौलने लगा
देश में विरोध का इक दौर चल पड़ा
गाँधी के असहयोग का भी जोर चल पड़ा
छोड़ी पढ़ाई और गुनहगार हो गया
पत्थर चलाया और गिरफ्तार हो गया
कोर्ट में वो पेश हुआ आन बान से
पन्द्रह बरस का बालक निकला था शान से
जब पूछा जज ने खुद को आजाद बताया
स्वाधीनता पिता और घर जेल बनाया
क्रुद्ध न्यायाधीश ने चखाने को मजा
जितनी थी उम्र उतने ही बेतों की दी सजा
जिस्म पे बेतों की जितनी बार गूँजी लय
उतनी ही बार बोला वो माँ भारती की जय
रो उठी प्रकृति औ वक्त़ जैसे गया थम
देखने वालों की आँख होती गयी नम
निर्दयता का शिकार हुआ पी के जो हाला
धधकने लगी सीने में इक क्रान्ति की ज्वाला
अंग्रेजों तुमको आज का दिन याद रहेगा
खायी कसम आजाद अब आजाद रहेगा
चल दिया आजादी का डोला लिए हुए
सीने में अपने क्रान्ति का शोला लिए हुए
गबरू जवान के शुरू हुए वो सिलसिले
माँ भारती के वास्ते बिस्मिल से जा मिले
रिपब्लिकन था संगठन जवान हो गया
गुल का दिवाना फिर तो गुलिस्तान हो गया
अशफाक,भगत,सान्याल सारे आ गए
लाहिड़ी सुखदेव बन सितारे आ गए
रोशन व राजगुरु मशाल बाल कर चले
मरने की इच्छा अपने मन में पालकर चले
चिंगारी क्रान्ति की जलाने वाले खाक से
काकोरी ट्रेन का खजाना लूटा धाक से
गुलामी का हर दाग फिर छुड़ा के चल दिए
साण्डर्स को भी गोली से उड़ा के चल दिए
पकड़े गए जवान यातनाएँ दी गयीं
पर मुख से कोई भेद कभी फूटा ही नहीं
रौलेट के बिल को रोकने की मन में ठान ली
बटुकेश्वर भगत ने हथेली पे जान ली
मौत के संग खेलते सब खेल-खेल में
जा पहुँचे हँसते गाते हुए सारे जेल में
आजाद को मगर पुलिस पकड़ नहीं सकी
बेड़ी में कानून के जकड़ नहीं सकी
दोस्तों को जेल से छुड़ाने के लिए
पहुँचे इलाहाबाद वो धन लाने के लिए
बैठे थे अल्फ्रेड पार्क में वो इंतजार में
सूचना पुलिस को दी गद्दार यार ने
अंग्रेज पुलिस टोलियों में ले के फिर गए
देखते ही देखते आजाद घिर गए
हौसला न छोड़ा भारती के लाल ने
पेड़ के पीछे लगायी घात काल ने
गोलियाँ जो माउजर की तड़तड़ा उठी
गोरों की रूहें भी निकल के फड़फड़ा उठी
लाशों की जाने कितनी कतारें निकल पड़ीं
ना जाने कितनी खून की धारें निकल पड़ीं
अभिमन्यु चक्रव्यूह में था शत्रु धुरंधर
आजाद का बदन भी हुआ खूँ में तर बतर
लड़ता रहा वो जिंदगी की जंग आखिरी
जब तक कि पास में न गोली आखिरी बची
मुट्ठी में मिट्टी देश की वो भर के चल दिया
खुद को मारी गोली और मर के चल दिए
मर कर भी दिल में लोगों के आबाद वो रहे
जिंदगी भर बेड़ी से आजाद वो रहे
चाहता था मुल्क में वो चैन और अमन
ऐसे महान वीर को दिल से मेरा नमन