*चक्की चलती थी कभी, घर-घर में अविराम (कुंडलिया)*
चक्की चलती थी कभी, घर-घर में अविराम (कुंडलिया)
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चक्की चलती थी कभी, घर-घर में अविराम
नियमित गेहूॅं पीसना, इसका था शुभ काम
इसका था शुभ काम, सुखाते गेहूॅं धोते
फिर चक्की पर पीस, सुखी घर-घर जन होते
कहते रवि कविराय, शुद्धता रहती पक्की
लगे हाथ व्यायाम, कराती चलती चक्की
रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451