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8 Nov 2024 · 1 min read

*चक्की चलती थी कभी, घर-घर में अविराम (कुंडलिया)*

चक्की चलती थी कभी, घर-घर में अविराम (कुंडलिया)
_________________________
चक्की चलती थी कभी, घर-घर में अविराम
नियमित गेहूॅं पीसना, इसका था शुभ काम
इसका था शुभ काम, सुखाते गेहूॅं धोते
फिर चक्की पर पीस, सुखी घर-घर जन होते
कहते रवि कविराय, शुद्धता रहती पक्की
लगे हाथ व्यायाम, कराती चलती चक्की

रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

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