चकाचौंध
चौकन्ने को ही भटकाता चकाचौंध का खटका।
आँख मूँद कर पार हो गया आँख खोलकर अटका।
मैंने देखा शांत सरोवर
तट पर शांत खड़े थे तरुवर
जिनके शांत बिम्ब थे जल में
केवल मीन दिखी हलचल में
मझा मझाकर दशों दिशाएँ मार रही थी झटका।
मानो मान रही थी खुद को गहन विपिन में भटका।।
संजय नारायण