चंद रोज की शौहरत
चंद लोग अपने आप में मगरुर हो गए,
शौहरत के नशे में खूब मजबूर हो गए
कर गए समझौता जो अपनी ही हया से,
वहीं जिस्म दिखाकर अपना मशहूर हो गए
बदल गई है कितनी,तहजीब बज़्म की,
बदलते वक्त के नए नए दस्तूर हो गए।
बड़े इतरा रहे है आज वो अपने इस्म पे,
ओ चर्चे बदनामी के यहां भरपूर हो गए।
हम कल थे जहां पर आज भी वही है,
बस पहले से भी ज्यादा महजूर हो गए।
हमें पसंद न आई ये चकाचौंध सी दुनिया,
उसूलों अपने खातिर उनसे दूर हो गए।
@साहित्य गौरव