चंद एहसासात
जान कर भी अंजान से बन जाते हैं लोग ,
अपनों से भी अजनबी से बन जाते हैं लोग ,
ये वक्त का है तकाज़ा ,
या फ़ितरत का है नतीज़ा ,
इक नया चेहरा लगाकर पेश हो जाते है लोग ।
जान कर भी अंजान से बन जाते हैं लोग ,
अपनों से भी अजनबी से बन जाते हैं लोग ,
ये वक्त का है तकाज़ा ,
या फ़ितरत का है नतीज़ा ,
इक नया चेहरा लगाकर पेश हो जाते है लोग ।