चंद एहसासात
चंद सांसों की क़ीमत ज़माना मांगता है ,
मुझसे ज़िंदा रहने का हक़ ज़माना मांगता है ,
ज़िंदगी में जो मंजर कभी देखा ना था देख रहा हूं ,
लगता है अब इंसानियत भी बिकने लगी है ,
नाते रिश्त़े सब बेकार से लगते हैं ,
वक़्त की मार से रसूख़दार ख़ास लगते हैं ,
चारागर की तलाश में भटकता फिर रहा हूं ,
शायद मेरी औक़ात इलाज खरीदने की नहीं है ,