चंद अशआर
🌺 चंद अशआर 🌺
ख़्वाब उनका आँखों में पल रहा है ।
कमबख़्त मिरी नींदों से जल रहा है ।।
वस्ल का दिन तो.. मुक़र्रर था फ़िर ।
क्यूँ ये लम्हा हाथों से फिसल रहा है ।।
संवारने मिरे इश्क़ का मुस्तक़बिल ।
माज़ी भी मुस्कुराकर साथ चल रहा है ।।
©डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की क़लम