*** चंद्रयान-३ : चांद की सतह पर….! ***
“” राहें पनघट की…
आसान हो सकती है…!
सैर पर्वतों की…
आसान हो सकती है…!
मगर ये सैर है…
चांद की ध्रुवीय सतह पर…,
इतना आसान नहीं, ये हो सकती है…!
ये जंग है…
असफलता में सफलता की…!
विज्ञान की विपन्नता में…
वैचारिक संपन्नता की…!
ये वादा है…
हौसले की जकड़ की…!
वैज्ञानिक विश्लेषण और…
अटूट इरादों के पकड़ की…!
हमने भी ठाना है…
मुश्किल से मुश्किल डगर, तय करना है…!
अब ” चंद्रयान -३ ” से…
आसमान की सैर करना है…!
और….
चांद की दक्षिणी ध्रुव पर , पैर रखना है…!
अपनी मंजिल की रास्ता…
कब तक, दूसरों से पूछेंगे…?
वो राष्ट्र कुटिल इरादों के गुमराह से…
कब तक यूं ही भटकते रहेंगे…?
अपनी अहमियत को अब…
हमने पहिचान लिया है…!
वैज्ञानिक क्षमता, आंकलन…
और परिकलन से…,
धरती-चांद की दूरी का…
सटीक अनुमान लगाया है…!
उम्मीदों की उड़ान…
हौसले की पहिचान…!
” मार्क-३, चंद्रयान-३ ” के सहारे…
चांद पर एक आशियाना बनाना है…!
” मानव हितकर ” हो विज्ञान शक्ति…
ऐसे नित नए अनुप्रयोग कर जाना है…!! “”
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