चंद्रयान-थ्री
बचपन मे माँ कहती थी कि, यह चंदा मेरे मामा है।
सोचा करता था मैं तब घर, कैसे इनके जाना है।।
वहाँ सुनहली बालों वाली, नानी बैठी चरखा लेकर।
लाड़ लड़ाएगी वह हमको, ढेरों खेल खिलौने देकर।।
पर चंद्रयान-थ्री घुसपैठिया, सतह चाँद की छू बैठा।
पोल खुली सारी उनकी, सुंदरता पर था जो ऐठा।।
दिखे स्वेत से मखमली मिट्टी, पर खड्डों से भरा पड़ा।
बर्फीले टीलों के बीच न, कोई भी दिखता पेड़ खड़ा।।
कलुषित मन होगा उनका, महबूबा जो इनको जाने।
चाँद सी सूरत वाली कैसे, खुद को इनकी बहना माने।।
सहज सुलभ हो आना- जाना, घर अंगना एकसार हुआ।
चाँद छूने की कल्पना देखो, अब कितना साकार हुआ।।
प्रेमी प्यारे कमर को कस ले, थे चाँद को जो तोड़ने वाले।
न जाने कब माँग ले प्रेमिका, संग इनके गिन- गिन तारे।।
कवियों की उपमा खो गयी, प्रीत के गीत बदल जाएगी।
चन्द्रमुखी गर कह बैठे तो, लेकर बेलन बीबी दौड़ायेगी।।
खैर चलो ये अच्छा ही हुआ, जो नींद से सबको जगा दिए।
भारत नही किसी से पीछे, दुनिया वालों को यह बता दिए।।
आज हमारी धरती अम्मा, ने चाँद को राखी भिजवाई।
दूर नही है वह दिन भी जो, मामा घर होगा आवा-जाई।।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, अब चंदा पर भी लहराएगा।
एक साथ मिल एक स्वरों में, जन गण मन जग गायेगा।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप” (सर्वाधिकार सुरक्षित ०४/०९/२०२३)