चंदन की कतार….
तेरे ज़िस्म की खुशबू, मुझमें यूँ सिमट आई है
जैसे किसी ने बियाबान में, चंदन की कतार लगाई है…
प्यार तो उनको भी हमसे, ना जाने कैसे हो गया
जीतें हैं कभी मरतें हैं कभी, क्या अजब सौदाई है…
जिंदगी कदम दर कदम, लेती है हिसाब वफ़ा का
मिटा दिया खुद को, लोग फिर भी कहते हरजाई हैं…
मुस्कुराहट भरी तेरी नजर, होठों पे हंसी दे जाती है
आईने को देखकर बारहॉं, खुद ही से नजर छुपाई है…
आपकी बज़्म में ये निगाहें, जो मुझ तक भी आ पहुँची
बड़ी मेहरबानी आपकी, जो नज़रे करम फरमाई हैं…
-✍️देवश्री पारीक ‘अर्पिता’
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