चंचल पंक्तियाँ
इन पंक्तियों से पूछता हूँ, तू किस डगर पर चल रही?
मैं सोचता कोई और पथ,कोई और पथ तू चुन रही।
आसमां पर उड़ रही जब पंछियों को देखता हूँ,
चिलचिलाती धूप में जब छाँव को मैं खोजता हूँ,
पर तेरा मन चंचल है किंचित, तू अलग धुन बुन रही।
मैं सोचता कोई और पथ, कोई और पथ तू चुन रही।।
इस धरा की खूबसूरत वादियाँ जब सोचता हूँ,
बादलों से गिर रहीं बूंदों मे जब मैं भीगता हूँ,
घाटियों में सागर का मंज़र, तू ये किंचित ढूँढती।
मैं सोचता कोई और पथ, कोई और पथ तू चुन रही।।
✍ सारांश सिंह ‘प्रियम’