घोर कलयुग
क्या यही है शुरुआत घोर कलयुग की?
हैवानियत की हदें हो रही पार,
कैसे है हम जिन्दा मानवता की हत्या के युग में ?
लांघ चुका है मनुष्य अपने नैतिक पतन की सीमाओं को….
और कितने जघन्य अपराध करेंगा तू,
एक बार फिर चढ़ी बलि मासूम की,
अमानवीय महाशर्मनाक घटना मल्लपुरम में,
निःशब्द हूँ मैं इस घटना के बाद,
कितना व्यवहारिक है मूक प्राणी के प्रति मानव का व्यवहार,
सच ही है मनुष्य इस धरती का सबसे क्रूर और स्वार्थी प्राणी है,
हे निर्दयी इन्सान!! तुझसे तो बेहतर है वे आदिवासी,
अपनी जान पर खेल कर बचाता है मूक प्राणियों को…….
हे मूर्ख!! आज कोरोना के रूप सिर पर मौत तांडव कर रही है,
फिर भी तू अमानवीय हरकतों से बाज नही आ रहा,
आत्मघाती साबित हो है सारी दुनिया,
वैज्ञानिक,वैचारिक,सामाजिक और आर्थिक क्रांति से गुजर रहा है जमाना……
क्या कसूर था उस माँ हथिनी का
मल्लपुरम में खाने की तलाश में निकली थी वह माँ,
अनन्नास में पटाखे भरकर खिला दिया उसे कुछ शरारती तत्वों ने
मुँह और जीभ बुरी तरह चोटिल हो गए उस अबला के,
कुछ खा नहीं पा रही थी ज़ख्मों की वजह से वह,
सड़कों पर भटकती रही अपने बच्चे की भूख की तड़प से बैचेन थी माँ
अरे निर्मोही!! फिर भी तुझको नुक़सान नहीं पहुँचाया उस माँ ने,
वह तो तड़पती रही अपने गर्भ में पल रहे मासूम के लिए…..
नदी में तीन दिन तक पानी में मुंह डाले खड़ी रही वह माँ.
इस चाहत में कि अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को बचा ले,
दिया नाम सांप्रदायिक का तूने इसे घोर हत्या के बाद ,
आखिर तब तक मासूमों को बलि चढ़ेगी… क्या यही है शुरुआत घोर कलयुग की?