घोर अंधेरा …………….
घोर अंधेरा
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हुआ विदा सन्नाटा अब
कालापन नहीं दिखायेगा ,
फिर से आकर घोर अँधेरा
हमको नहीं डरायेगा !
नया उजाला पाकर वो
सूनेपन में छुप जायेगा ,
दुख के काले गहरे बादल
अब करीब ना आयेगा !
भरी सिसकियो से वो मौसम
मुझको नहीं रुलाएगा ,
खुशियो की सौगात लिए वह
इक दिन सम्मुख आएगा !
कंटिल पथ पर वो बिखेर देगा
फिर से इक नया नजारा ,
सारा दुख घबराकर फिर तो
दूर भाग वह जायेगा !
दोनो हाथो से खुशियों का
दामन स्वयं पकड़ लूंगी ,
और बांध लूंगी उसको मैं
विश्वासों के आंचल में ,
पाकर अपनापन नवीन वो
फिर मेरा हो जायेगा !
कलतक थी बेचैन बहुत मैं
रात बिताना मुश्किल था ,
भर देगा वह नया रंग
मेरे इस सूने जीवन में ,
धीरे धीरे सहलाकर वह
मीठी नींद सुलायेगा !
“कविता चौहान”