घूँघट के पार
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नारी हाथों में रही,सकल सृष्टि पतवार।
काफी कुछ है नारियाँ,इस घूँघट के पार।
घर-आँगन रौशन करे,ये सूरज दमदार।
स्नेह, ममता, त्याग की,शक्ति रूप साकार ।
दुर्गा, काली अंबिका,लक्ष्मी का अवतार।
रही प्रबल जो मर्द से, प्रेरक का आधार।
काफी कुछ है नारियाँ,इस घूँघट के पार।
ओढी शिक्षा का चुनर,हैआधुनिक विचार।
घर-बाहर सम्हालती दोधारी तलवार।
तोड़ गुलामी की सभी,फाँद चार दीवार।
गूँज रही है चाँद पर,अब जिसकी झंकार।
काफी कुछ है नारियाँ,इस घूँघट के पार।
सेना बनकर देश हित,करती रिपु पर वार।
रक्षा करने के लिए,खड़ी रही तैयार।
तन-मन कोमल फूल सी,बन जाती अंगार।
दुष्ट दानवों का करें, क्षण में ही संहार।
काफी कुछ है नारियाँ,इस घूँघट के पार।
सजग,,सबल,शालीनता,सतत सुभग व्यवहार।
नहीं भूलती धर्म को, मर्यादा, संस्कार।
दिया मात जो नियति को,बनी तीक्ष्ण औजार
नारी में दिखता सदा, ईश्वरीय चमत्कार।
काफी कुछ है नारियाँ,इस घूँघट के पार।
—लक्ष्मी सिंह