घुट रही है सांस पल -पल
छंद-मनोरम (मात्रिक,मापनीयुक्त)
२१२२ २१२२
घुट रही है सांस पल -पल ।
दिख रहा नहिं कोई’ निश्छल।(१)
हर जगह मेला लगा है,
मिल रहा ना शुद्ध भी जल।(२)
प्राण वायू की कमी है,
हम हुए हैं हर पल विफल।(३)
भूख से हैं प्राण निकले,
अश्रुपूरित हैं सभी तल।(४)
खुश्क आंखें नम्र पलकें,
क्षुब्ध है नदिया की’ कल-कल।(५)
शाख पर उल्लू है’ बैठा,
चल रहा है चाल अरु छल।(६)
राज्य की आंखें मुॅदीं हैं,
हो रहा हर काम निष्फल।(७)
वेदना है आज दिल में,
हम कहें किससे अब अटल।(८)
?अटल मुरादाबादी ?