घुटने टेके नर, कुत्ती से हीन दिख रहा
(मुक्त छंद)
चर्म रोग में चाटता, कुत्ता अपनी खाल।
मानव निज तन कर रहा, खुजा खुजा कर लाल।।
खुजा खुजा कर लाल, हारकर वैद्य बुलाता।
कुक्कुर बिना दवा के चंगा, रोब दिखाता।।
कह “नायक” कविराय, श्वान स्वाधीन दिख रहा।
घुटने टेके नर, कुत्ती से हीन दिख रहा।।
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*उक्त मुक्त छंद को “जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह के द्वितीय संस्करण के अनुसार परिष्कृत किया गया है। पृष्ठ संख्या ८२
*”जागा हिंदुस्तान चाहिए” काव्य संग्रह का द्वितीय संस्करण अमेजन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
पं बृजेश कुमार नायक