” घी, दूध, छाछ, मलईया गायब “
सोफा, पलंग, ने जगह बनाया,
घर से है चारपईया गायब,
कच्चे घर अब पक्के बन गए,
हर घर से अँगनइया गायब,
सोहर, कजरी, फगुवा, बिरहा,
दोहा और सवइया गायब,
स्विमिंग पुल तो बन गए भईया,
है पोखर ,ताल, तलइया गायब,
कट गए सारे पेड़ गाँव के,
कोयल और गौरइया गायब,
कार्ड ही जेब में भरे पड़े हैं,
अब तो नोट, रुपइया गायब,
दरवाज़े पर गाड़ी लग गयी,
बकरी, भैंस, और गइया गायब,
ब्रेड ,जैम और सूप से नाश्ता,
घी, दूध, छाछ, मलईया गायब।