घिर गया मैं
लगी ठोकर जमीं पर गिर गया मैं लड़खड़ाकर
कहा सबने कि पीकर फिर गया मैं लड़खड़ाकर
दिखी थी बेगुनाही हर कदम मेरी हमेशा
कहा सबने मुझे शातिर गया है लड़खड़ाकर
जिसे चाहा वही देकर गया सदमे बिरादर
लिये आँसू झुकाकर सिर गया मैं लड़खड़ाकर
कभी जो थी तन्हां आगोश में आयी सिमटकर
उसी एहसास की खातिर गया मैं लड़खड़ाकर
मिली ना शह किसी से चाल संजय ने चली जब
तिरी यादें चलीं जब घिर गया मैं लड़खड़ाकर