घाव
घाव
रह सकते थे तुम मेरी
ज़िन्दगी मे फूलो की
तरह क्यों बिखेर दिये
कांटे राहो मे
मेरी तो उम्र गुजरी है
कांटो मे ही मैं तो
कांटो पर भी
चलता जाऊंगा
अफसोस मुझे होगा
मैं तुम्हें फूलों का
अहसास ना करा पाया
कांटे देने से अच्छा था
तुम याद बन कर
रह जाते दिल पर
घाव तो नही होता
©पूरनभंडारी सहारनपुरी