घावों का कोई मोल नहीं
दावों का कोई मोल नहीं
घावों का कोई मोल नहीं।
रिश्तों से बढ़कर इस जग में
कुछ भी होता अनमोल नहीं।।
अपने तो अपने होते हैं
जब गैर दिखायें अपनापन
तब कर देना उन पर सबकुछ
न्योछावर अपना तन मन धन
पैसे से सब कुछ तोल नहीं
रिश्तो से बढ़कर इस जग में
कुछ भी होता अनमोल नहीं
सांसे तो रुकनी हैं इक दिन
फिर व्यर्थ अहं क्यों पाले हो
कुछ भी जायेगा साथ नहीं
क्यों धन की माला डाले हो
कचरे को हीरा बोल नहीं
रिश्तों से बढ़कर इस जग में
कुछ भी होता अनमोल नहीं
अर्जन करना तो पुण्य कमा
छल दंभ कपट मे रक्खा क्या
सबको तू मीठे बोल बाँट
कड़वे बोलों में रक्खा क्या
अब अमृत में विष घोल नहीं
रिश्तों से बढ़कर इस जग में
कुछ भी होता अनमोल नहीं
अशोक मिश्र