‘घायल मन’
‘घायल मन’
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मानव मन,परेशां सह घायल है;
पर दु:ख में, सुख के कायल है।
जैसे, देखो नारी मन का पुरनूर;
तन लदे गहने, पैरों में पायल है।
घायल मन,भी खूब मचलता है।
ये मन भी,मन ही मन चलता है।
हर क्षण,ऐसी मन की सुना करो;
वक़्त फिसले, मन में खलता है।
ऐसे मन भी,कुछ अरमान दिखे।
पर मन हेतु, सही सम्मान दिखे।
यह मन, रहे दिखावे से दूर सदा;
यदा-कदा ही, स्वाभिमान दिखे।
घायल मन को, मलिन न होने दो।
मनवांछित को,विलीन न होने दो।
लक्ष्य हेतु लड़ो, मन न भटकाओ;
शत्रु मन, कभी कुलीन न होने दो।
मन चाहे, मौसम सदा सावन हो।
निज खुशियां,सभी मनभावन हो।
मन में,इर्ष्या व द्वेष दिखे न कभी;
घायल मन की मंशा भी पावन हो।
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#स्वरचित_सह_मौलिक;
…….✍️पंकज कर्ण
…….कटिहार (बिहार)।