घाट किनारे है गीत पुकारे, आजा रे ऐ मीत हमारे…
मेरी कलम से
आनन्द कुमार
गाँव, गंगा, गोरी
जब नाव में बैठे छोरी
लहरों को निहारे
कभी छू ले कभी उछाले
कभी मुस्काए कभी इतराए
अपलक कभी निहारे
मन ही मन शब्द संजोए
प्रेम रस में फिर उसको घोले
“अनामिका” बन कभी बिखेरे
“अम्बुज” बन कर उसको छू ले
उसके आवाज़ में जादू है
जब शब्दों को वह मुख से बोले
घाट किनारे है गीत पुकारे
आजा रे ऐ मीत हमारे…
अनामिका जैन अम्बर की तस्वीर पर छोटी सी रचना…